मय्यत का क़र्ज़ उस के माल से अदा करने का क्या हुक्म है ? जानिए हदीस की रौशनी में …
ये एक बड़ी सुन्नत है जो आह के समय में हम भूलते जा रहे है वो ये के जब किसी शख्स का इंतकाल हो तो सब से पहले उसके कर्जदारों को उसके माल से जो वो छोड़ गया है देना चाहिए चाहे उसका सारा माल ही कर्ज़े में चला जाएँ , फिर अगर माल बचता है उसमे से उसके वारिसों को दिया जाएगा ।
मफ़हूम-ए-हदीस :
हज़रत अली रज़ि० फरमाते हैं के रसूलुल्लाह सल्लसल्लाहु अलैहि वसल्ल्म ने क़र्ज़ को वसिय्यत से पहले अदा करवाया , हांलाके तुम लोग ( क़ुरआन पाक में ) वसिय्यत का तज़किरा क़र्ज़ से पहले पढ़ते हो ।
[ तिर्मिज़ी ]
फ़ायदा :
अगर किसी शख्स ने क़र्ज़ लिया और उसे अदा करने से पहले इन्तेकाल कर गया , तो कफ़न व दफन के बाद माले वरासत में से सब से पहले क़र्ज़ अदा करना ज़रूरी है , चाहे सारा माल उस की अदायगी में खत्म हो जाए ।
(सिर्फ पांच मिनट का मद्रसा सफा 679)